अतिरिक्त >> देश भक्ति देश भक्तिराम खिलावन शुक्ला
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नदीम और श्याम दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों में अच्छी दोस्ती थी। दोनों एक दूसरे से मिले बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे। उनके परिवार एक ही मोहल्ले में रहते थे।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दोस्ती
नदीम और श्याम दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों में अच्छी दोस्ती
थी। दोनों एक दूसरे से मिले बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे। उनके परिवार
एक ही मोहल्ले में रहते थे। उनके घर अधिक दूर नहीं तो अधिक पास भी नहीं
थे। मोहल्ला काफी बड़ा था। श्याम का मकान प्रारम्भ में था और नदीम का अंत
में।
श्याम की एक छोटी बहन थी जिसका नाम श्यामली था। उनकी मां का देहांत श्यामली के जन्म के समय ही हो गया था दोनों भाई-बहन अपने पिता के साथ रहते थे। नदीम अकेला था उसके पिता ट्रक ड्राइवर थे। जिनकी एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो चुकी थी। उस मोहल्ले में दो-चार परिवार ही मुसलमानों के थे, शेष सभी हिन्दू थे, सभी हिन्दू कट्टरवादी थे और अपने बीच इन गैर मजहबी लोगों का रहना उन्हें बिलकुल ही पसंद नहीं था, पर वे कुछ नहीं कर सकते थे।
क्योंकि पुरखों के जमाने से रह रहे इन मुस्लिम परिवारों को निकालना उनके बस में नहीं था कहते हैं कि ये सभी हिन्दू थे पर औरंगजेब के भय से इन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। जिन्हें उन हिन्दुओं के पूर्वजों ने तो माफ कर दिया परन्तु वे आज भी इन्हें माफ नहीं कर पा रहे थे। इस तरह इस मोहल्ले में रहने वाले हिन्दू और मुस्लिम परिवारों में आपस में दुश्मनी थी।
धीरे-धीरे दोनों बच्चों की दोस्ती के बारे में उनके घरों में पता चला। उनके घरों में इस बात का विरोध होने लगा। नदीम की माँ अधिक चिन्तित थीं उन्होनें कहा-‘‘बेटा । ये हिन्दू हमारे दुश्मन हैं बच कर रहना, इनसे दोस्ती न करना।’’ ऐसा ही कुछ विचार श्याम के पिता का भी था।
उन्होंने तो साफ कह दिया कि नदीम से दोस्ती छोड़ दो। पर उन बच्चों पर कोई असर नहीं हुआ। धीरे-धीरे उनकी दोस्ती परवान चढ़ने लगी। श्यामली भी खुश थी। उसे एक साथ दो-दो भाइयों का प्यार मिल रहा था। उनके बीच हिन्दू मुस्लिम कोई दीवार न थी। इन सभी मज़हबी भावनाओं से परे वे प्यार के रिश्ते में बँधे हुए थे। तीनों बच्चे बहुत खुश थे।
श्याम की एक छोटी बहन थी जिसका नाम श्यामली था। उनकी मां का देहांत श्यामली के जन्म के समय ही हो गया था दोनों भाई-बहन अपने पिता के साथ रहते थे। नदीम अकेला था उसके पिता ट्रक ड्राइवर थे। जिनकी एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो चुकी थी। उस मोहल्ले में दो-चार परिवार ही मुसलमानों के थे, शेष सभी हिन्दू थे, सभी हिन्दू कट्टरवादी थे और अपने बीच इन गैर मजहबी लोगों का रहना उन्हें बिलकुल ही पसंद नहीं था, पर वे कुछ नहीं कर सकते थे।
क्योंकि पुरखों के जमाने से रह रहे इन मुस्लिम परिवारों को निकालना उनके बस में नहीं था कहते हैं कि ये सभी हिन्दू थे पर औरंगजेब के भय से इन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। जिन्हें उन हिन्दुओं के पूर्वजों ने तो माफ कर दिया परन्तु वे आज भी इन्हें माफ नहीं कर पा रहे थे। इस तरह इस मोहल्ले में रहने वाले हिन्दू और मुस्लिम परिवारों में आपस में दुश्मनी थी।
धीरे-धीरे दोनों बच्चों की दोस्ती के बारे में उनके घरों में पता चला। उनके घरों में इस बात का विरोध होने लगा। नदीम की माँ अधिक चिन्तित थीं उन्होनें कहा-‘‘बेटा । ये हिन्दू हमारे दुश्मन हैं बच कर रहना, इनसे दोस्ती न करना।’’ ऐसा ही कुछ विचार श्याम के पिता का भी था।
उन्होंने तो साफ कह दिया कि नदीम से दोस्ती छोड़ दो। पर उन बच्चों पर कोई असर नहीं हुआ। धीरे-धीरे उनकी दोस्ती परवान चढ़ने लगी। श्यामली भी खुश थी। उसे एक साथ दो-दो भाइयों का प्यार मिल रहा था। उनके बीच हिन्दू मुस्लिम कोई दीवार न थी। इन सभी मज़हबी भावनाओं से परे वे प्यार के रिश्ते में बँधे हुए थे। तीनों बच्चे बहुत खुश थे।
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